महेश कुशवंश

2 जुलाई 2015

ये माँ है ..... माँ वैष्णो.....



रात के बारह बजे है
अचानक एक चीख
राजधानी एक्स्प्रेस की रफ्तार से भी तेज
मेरा  पर्स चोरी हो गया
अभी तो यहीं था
मैंने पेंटरी कर वेटर को  टिप दी थी
टी-टी, जी आर पी ,सह यात्री
सभी एक्शन मे आ जाते हैं
पर्स मे काफी पैसे ,आई-फोन ,क्रेडिट कार्ड बहुत कुछ था
जिसका पर्स गिरा
वो रो रो कर हलकान थी
राजधानी भागी जा रही थी जम्मू की ओर
माँ वैष्णो के दर्शन का
ये कैसा आगाज
न पर्स मिला ना एफ़आई आर लिखी गई
वी आई पी ट्रेनों का ये हाल
भारतीय रेल की पोल खोल रहा था
माँ मुझसे क्या गलती हुयी
जो पचास हज़ार की चपत लगी
और दर्शन मे उद्दीग्न हुआ मन
कटरा मे , माँ के दर्शन की तैयारी मे था
तभी फोन घंघनाता है
मैं खन्ना से गुरिंदर बोल रहा हूँ
आपका कोई पर्स खोया है
इस अद्भुत सी बात से मैं  चौक जाता हू
हा.....जी ,
बेटी का पर्स ट्रेन मे कहीं गायब हो गया था
.............................
चुरा लिया गया था
मुझे ये रेल पटरियों पे मिला
इसमे पैसे रुपये तो मात्र सत्तर हैं
मगर , दो महगे फोन भी है
माँ ने अपना चमत्कार दिखा दिया था
एक अविस्वसनीय सी घटना
माँ का भक्त  सरदार गुरिंदर
रात बारह बजे , लुधियाना मे
लौटती राजधानी का इंतज़ार कर रहा था
अमानत सौपने के लिये
अमानत सौप कर वो  बे इंतिहा खुश था
मैं अभीभूत था
उसकी सहृदयता पर , ईमानदारी पर
सेवा भावना पर
और माँ वैष्णोकी प्रभुसत्ता पर
जय माता दी ......

-कुशवंश



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