महेश कुशवंश

18 जनवरी 2016

उदयपुर....फूलों की नर्सरी

उदयपुर
पहाड़ों के आँचल मे
झीलों से अठखेलियाँ करते
भव्य किलों का शहर
मुझे ये एहसास करा गए
मैं उज्ज्वल संस्कृति के
ब्रहद नेपथ्य मे खो गया
हथियों के हौदों पर रत्न आभूसनों से लदे
प्रजा का अभिवादन स्वीकार करते
राजा महाराजा
सड़कों पर कोर्निस कर झुकी जाती प्रजा
उन्हीं के बीच मैं
स्वयं को खोजता रहा
न राजा दिखे न महाराजा और
नाही दिखी कोर्निस को झुकी प्रजा
दिखा तो बस विदेशी पर्यटकों का सैलाब
और उन्हें कुछ समझाते बुझाते  उदैपुरी
मूछें और कान मे बाली पहने राजपूती युवक
पूर्व  रियासत के घुड़साल  भी
तब्दील हो गए विलाओं मे
महल  बन गए सितारा होटल , बिज़नस हब
झीलें अब नहीं रहीं किसी की जागीर
बन गई बच्चों की किलकारियों का सबब
देर रात सुखाड़िया सर्कल पर गहमा गहमी
सुबह का सूरज (भास्कर ) , धनात्मक ऊर्जा से भरे समाचारों से लैस
फिर सरपट दौड़ने को तैयार उदयपुर
विदेशी पर्यटकों की .......वाव ......वाव.............
देशी पर्यटकों की गर्व से फूलते सीनों की गमक
उदयपुर को और भी , धरोहर घोसित कर देते हैं 
और इन सबसे ज्यादा 
प्रिंसेस (रायना)  की अबोध किलकारिया
हृदय को सुखद प्रभास से सराबोर कर देती हैं 
उदयपुर एक सन्स्क्रतिक धरोहर ही नही रहता  
प्रस्फुटित फूलों की नर्सरी बन जाता है 
जिसे मैं हृदय मे सहेजना चाहता हूँ 
सदा के लिए 

---कुशवंश


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

आपके आने का धन्यवाद.आपके बेबाक उदगार कलम को शक्ति प्रदान करेंगे.
-कुश्वंश

हिंदी में